इस कोर्स के पहले हिस्से में हमने प्रोफेशनल ट्रेडर्स द्वारा उपयोग की जानेवाली सबसे अच्छी ब्रेकआउट स्ट्रैटेजीज पर फोकस किया। आज और अगले कुछ आर्टिकल्स में हम देखेंगे कि हम कैसे टेक्निकल स्ट्रैटेजीज का उपयोग करके स्क़ैंस को परिभाषित कर ट्रेडिंग अवसर ढूंढ सकते हैं।
इसे हफ्ते मैं जिस इंडिकेटर को डिस्कस करना चाहता हूँ वो शानदार से कम नहीं है और वह है 'ऑसम ओसिलेटर'।
चलिए देखते हैं कि यह इंडिकेटर कैसे बनता है, किन अलग अलग तरीकों से इसे इंटरप्रेट करके ट्रेडिंग स्ट्रैटेजीज बनाई जाती हैं और अंतत कैसे हम इस स्कैनर को अन्य इंडिकेटरों के साथ कम्बाइन करके मजबूत स्ट्रैटेजीज बना सकते हैं।
प्रारम्भ
ऑसम ओसिलेटर का विकास एक दूरदर्शी ट्रेडर बिल विलियम्स ने किया जिन्होने, टेक्निकल एनालिसिस को साइकोलोजी के साथ मिलाकर अपनी केओस थ्योरी नामक थ्योरी बनाई। उनकी पुस्तक ट्रेडिंग केओस में परिभाषित मार्केट स्ट्रक्चर में ऑसम ओसिलेटर डायमेंशंस में से एक था। मुख्य रूप से, ऑसम ओसिलेटर मार्केट मोमेंटम को मापनेवाला एक इंडिकेटर है।
निर्माण
एओ एक 34-पीरियड और 5-पीरियड के सिंपल मूविंग एवरेजेस की गणना करता है। उपयोग किए जानेवाले मूविंग एवरेज की गणना क्लोजिंग प्राइज़ का उपयोग करके नहीं बल्कि, हर केन्डल के मिड-पॉइंट्स अर्थात (हाई+लो)/2 का उपयोग करके किया जाता है। यह तथ्य कि यह हाई और लो के एवरेज से नहीं बना है इसे उन मार्केट्स में और मजबूत बनाता है जिनमे मूवमेंट्स और कैन्डल के आकार रेगुलर होते हैं।
यदि आप ऐसे मार्केट में ट्रेड करते हैं जहां कैन्डल आकार बदलता रहता है तो ऑसम ओसिलेटर इन मार्केट्स के लिए बेस्ट नहीं होगा क्योंकि यह उन मूविंग एवरेजेस को तोड़-मरोड़ देगा।
तो, यदि आप इस इमेज को देखें, तो ओसम ओसिलेटर को इस तरह डिजाइन किया गया है कि इसकी वैल्यूज एक ज़ीरो लाइन के ऊपर और नीचे घटती-बढ़ती हैं। उत्पन्न हुई वैल्यूज को लाल और हरे हिस्टोग्राम केन्डल के रूप में प्लॉट किया गया है।
एक केन्डल तब हरी होती है जब इसकी वैल्यू पिछली से ज़्यादा हो।
लाल केन्डल दर्शाती है कि इसकी वैल्यू पिछली से कम है।
ऑसम ओसिलेटर 2 वैल्यूज में सीमित नहीं है। इसे 0 और 100 के बीच चलने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि यह 2 मूविंग एवरेजेस के बीच का अंतर है और यह अंतर कितना भी ज़्यादा या कम हो सकता है और 0 से दूर रहता है।
चलिए अब ऑसम ओसिलेटर से संबन्धित 4 स्ट्रैटेजीज देखते हैं
ये हैं:
· ज़ीरो लाइन क्रॉस ओवर्स
· ट्विन पीक्स
· सॉसर्स
· डायवर्जेंसेस
ज़ीरो लाइन क्रॉस ओवर
सबसे आसान सिग्नल तब होता है जब ओसिलेटर की वैल्यू ज़ीरो के स्तर को पार करती है। यह हमें 2 आसान ट्रेडिंग सिगनल्स देती है:
1. नेगेटिव से पॉज़िटिव तक क्रॉस एक बुलिश सिग्नल है।
2. पॉज़िटिव से नेगेटिव एक बियरिश सिग्नल है।
ट्विन पीक्स पैटर्न
इस स्ट्रैटेजी में आपको ज़ीरो लाइन के एक ही तरफ 2 पीक्स देखने होते हैं। एक और आवश्यकता यह होती है कि पीक्स का रिवर्सल भी ज़ीरो लाइन के एक ही तरफ होना चाहिए। एक बुलिश ट्विन पीक सिग्नल में पीक्स ज़ीरो लाइन के नीचे होती हैं जिसके लिए दूसरी पीक को पहली से ऊंचा(कम नेगेटिव) होना चाहिए। इसके बाद एक हरी केन्डल भी होना चाहिए। एक बियरिश ट्विन पीक्स सिग्नल इसके विपरीत होता है- 2 पीक्स ज़ीरो लाइन के ऊपर होनी चाहिए। इसी तरह,दूसरी पीक को पहली से नीचा होना चाहिए और इसके बाद एक लाल केन्डल होनी चाहिए।
सॉसर्स
यह स्ट्रैटेजी मोमेंटम में त्वरित बदलावों की खोज में रहती है और एओ हिस्टोग्राम की तीन लगातार केन्डल में एक विशिष्ट पैटर्न, तीनों ज़ीरो लाइन के एक तरफ, की आवश्यकता होती है। एक बुलिश सॉसर में सभी तीनों केन्डल का ज़ीरो लाइन के पॉज़िटिव तरफ होना आवश्यक है। जिस निर्माण की तलाश आप कर रहे हैं वह एक लाल केन्डल है जिसके बाद एक छोटी लाल केन्डल और फिर एक हरी केन्डल है। एक बियरिश सॉसर में सभी तीनों केन्डल का ज़ीरो लाइन के नेगेटिव तरफ होना आवश्यक है।क़ॉँबिनेशन होना चाहिए एक हरी केन्डल, उसके बाद एक और छोटी हरी केन्डल (अर्थात वैल्यू में कम नेगेटिव), उसके बाद एक लाल केन्डल।
प्राइज़ और मोमेंटम डायवर्जेंस
जैसा कि अधिकतर मोमेंटम इंडिकेटर्स के साथ, प्राइज़ और मोमेंटम के बीच का डायवर्जेंस भी मार्केट में क्या चल रहा है का पता लगाने के लिए एक उपयोगी सुराग देता है। उदाहरण के लिए हम प्राइज़ को नए हाइज़ पर पहुँचते देखते हैं पर एओ इंडिकेटर नई ऊंचाई पर नहीं पहुंचने में सफल नहीं हो पाता तो यह एक बियरिश डायवर्जेंस है। इसी तरह, यदि प्राइज़ नए लो पर पहुंचता है और एओ उसके पीछे नहीं जाता तो यह एक बुलिश डायवर्जेंस है।
कोई भी सिग्नल अचल नहीं होता। हमेशा पुष्टि के लिए इसे दूसरे इंडिकेटर के साथ कम्बाइन करना याद रखें।
ऑसम ओसिलेटर स्ट्राइटेजीज़ के लिए स्कैन करना
यह जानने के लिए कि आप एओ स्ट्रैटेजीज को कैसे ट्रेड कर सकते हैं, नीचे दिया गया विडियो देखें।